सौदाघर के इस पूरे वृक्षारोपण अभियान में हमारा साथ दिये हैं- श्री संभाजी भोसले, श्री संतोष सातव, श्री सुमित खत्री, श्री राघवेंद्र प्रताप सिंह, श्री यशवंत कुमार, श्री अभिषेक जाधव, श्री ब्रम्हदेव, श्री भंडारे। और पूरे अभियान का मागदर्शन माहिती सेवा समिति के अध्यक्ष श्री चंद्रकांत वारघड़े जी ने किया। कहाँ बैठोगे बाँहों में बाहें डाले, ओ इश्क के कबूतर। अगर यूं ही काटते रहे पेड़ों को तुम मिल-मिल कर। घूमते हो दर-बदर छांव की तलाश में.. क्यों काट दिया उन्हें ही, जो देते थे आशियाना खैरात में.. नन्हे से बच्चे के खातिर लुटाते हो जान बात-बात में.. क्यों काट के तौल दिया उसको चंद पैसों की आश में... यूं ही नहीं कोई बड़ा हो जाता, यूं ही नहीं कोई दुलारा हो जाता। माँ ने बड़ी सिद्दत, बहुत आंसू, बड़े चाहत को लुटाया है उसके हर चाल पर वो पेड़ भी एक माँ है जो बिना चाहत, बिना मतलब के दे देती है... छांव, फूल-फल सबकुछ बिना किसी के पहचान के... दोस्त-दुश्मन, बच्चे, बड़े-बूढ़े सबको मानती है एक हिसाब से... आओ चलें लगाएं 2-4 पौधे अपने हाथ से... Content Credits: Shishu Singh